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* अ़जब निशात से, जल्लाद के, चले हैं हम & *
अ़जब निशात से, जल्लाद के, चले हैं हम आगे
कि, अपने साए से, सर पाँव से है दो क़दम आगे
क़ज़ा ने था मुझे चाहा ख़राब-ए-बादा-ए-उलफ़त
फ़क़त, 'ख़राब', लिखा बस, न चल सका क़लम आगे
ग़म-ए-ज़माना ने झाड़ी, निशात-ए-इश्क़ की मस्ती
वगरना हम भी उठाते थे लज़्ज़त-ए-अलम आगे
ख़ुदा के वास्ते, दाद उस जुनून-ए-शौक़ की देना
कि उस के दर पे पहुंचते हैं नामा-बर से हम आगे
यह उ़मर भर जो परेशानियां उठाई हैं हम ने
तुम्हारे आइयो, ऐ तुर्रा हाए-ख़म-ब-ख़म आगे
दिल-ओ-जिगर में पर-अफ़शां जो एक मौज-ए-ख़ूं है
हम अपने ज़ोअम में समझे हुए थे उस को दम आगे
क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब'
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे
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