तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ, मेरा दिमाग़-ए-अ़जज़ आ़ली है अगर पहलू-तही कीजे, तो जा मेरी भी ख़ाली है रहा आबाद आ़लम, अहल-ए हिम्मत के न होने से भरे हैं जिस क़दर जाम-ओ-सुबू मैख़ाना ख़ाली है ****