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Mumtaz Naza
 
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* कारगाह ए यौम ए नौ का खुल रहा है पहल& *
कारगाह  ए यौम  ए  नौ  का  खुल  रहा  है  पहला  बाब 
सुबह की  पेशानी  पे  चुनता  है  अफशां  आफ़ताब
जाग  उठी  है , लेती  है  अंगड़ाइयां सुबह  ए  ख़िराम
अपने  अपने  काम  पर  सब  चल  दिए  हैं  ख़ास  ओ  आम 
अपनी  अपनी  फ़िक्र  ओ  फ़न में  हौसले  महलूल हैं 
बूढ़े , बच्चे, मर्द  ओ  ज़न, सब  काम  में  मशगूल हैं 
इक  तरफ़ माज़ी का  ग़म  है , इक  तरफ़  है  जश्न  ए  हाल 
मर  गया  इक  साल  और  पैदा  हुआ  है  एक  साल 
चल  पड़ी  फिर  ज़िन्दगी , रंगीं रिदा  ओढ़े  हुए 
कामरानी  की  सुरीली  सी  सदा  ओढ़े  हुए 
आरज़ू 'ओं के  लबों  पर  फिर  तबस्सुम  खिल  उठा 
जाग  उठा , अंगड़ाइयां  ले  कर  के  मुस्तक़बिल उठा 
हसरतें  मचली हैं , फिर  सब  के  लबों  पर  है  दुआ 
काश ! अब  के  साल  सच  हो  जाए  सब  सोचा  हुआ 
मैं  भी  करती  हूँ  दुआएं , दोस्तों  के  वास्ते 
या  खुदा , हमवार  कर  दे  हर  किसी  के  रास्ते 
हर  किसी  को  दे  ख़ुशी , हर  एक  की  हसरत  निकाल 
ले  के  रहमत  का  ख़ज़ाना , आये  नौ  मौलूद  साल 
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