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Qateel Shifai
 
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* उल्फ़त की नई मंज़िल को चला, तू बाँह *
उल्फ़त की नई मंज़िल को चला, तू बाँहें डाल के बाँहों में 
दिल तोड़ने वाले देख के चल, हम भी तो पड़े हैं राहों में 

क्या क्या न जफ़ायेँ दिल पे सहीं, पर तुम से कोई शिकवा न किया 
इस जुर्म को भी शामिल कर लो, मेरे मासूम गुनाहों में 

जहाँ चाँदनी रातों में तुम ने ख़ुद हमसे किया इक़रार-ए-वफ़ा 
फिर आज हैं हम क्यों बेगाने, तेरी बेरहम निगाहों में 

हम भी हैं वहीं, तुम भी हो वही, ये अपनी-अपनी क़िस्मत है 
तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से, हम डूब गये हैं आहों में 
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