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Raaz Allahabadi
 
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* आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया हम  *
आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया हम कफ़स से निकल कर किधर जायेंगे
इतने मानूस सय्याद से हो गए अब रिहाई मिलेगी तो मर जायेंगे 
आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया ....

और कुछ दिन ये दस्तूरे-मयखाना है तश्नाकामी के ये दिन गुज़र जायेंगे 
मेरे साकी को नज़रें उठाने तो दो जीतने ख़ाली हैं सब जाम भर जायेंगे 
आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया ....

ऐ नसीमे -सहर तुझ को उनकी कसम, उनसे जा क़र न कहना मेरा हाले -ग़म
अपने मिटने का ग़म तो नहीं है मगर डर ये है उनके गेसू बिख़र जायेंगे 
आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया .....

अश्के -ग़म ले के आखिर कहाँ जाएँ हम, आंसुओं की यहाँ कोई कीमत नहीं 
आप ही अपना दामन बढ़ा दीजिये वरना मोती ज़मीं पर बिख़र जायेंगे 
आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया ....

काले काले वो गेसू शिकन दर शिकन वो तबस्सुम का आलम चमन दर चमन
खींच ली उनकी तस्वीर दिल ने मेरे , अब वो दामन बचा क़र किधर जायेंगे 

आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया हम कफस से निकल के किधर जायेंगे 
इतने मानूस सय्याद से हो गए अब रिहाई मिलेगी तो मर जायेंगे 
आशियाँ जल गया गुलसितां लुट गया 
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