* जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर *
ग़ज़ल
जिस तरफ़ भी देखती हूँ एक ही तस्वीर है
ऐ खुदा ! क्या वो मेरी किस्मत में भी तहरीर है
इस हथेली में मुहब्बत की लकीरें हैं बहुत
हाँ ! मगर ज़ंजीर में उलझा खते-तक़दीर है (खते तकदीर =भाग्य रेखा )
बीच रस्ते में खड़ी है चीन कि दीवार सी
इस तरफ़ है ख़्वाब मेरे , उस तरफ़ ताबीर है
जाने क्यूँ मेंहदी रचा रक्खी है मेरे वीर ने
जाने क्यूँ हम लड़कियों के पाँव में ज़ंजीर है
हम तो करते थे मुहब्बत भी इबादत की तरह
अब खुला 'रख्शाँ ' मुहब्बत काबिले ताज़ीर है
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