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Ramesh Kanwal
 
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* एक औरत ही आदम की तकदीर थी *
एक औरत ही आदम की तकदीर थी                             
या  हवस की गुफ़ाओं की जागीर थी                 .                                                             

हर कड़ी का बदन खौफ़ में क़ैद था                         
सच को जकड़े हुये एक जं़जीर थी                                  .                                                   

फ़र्ज़ की सूलियों पे मैं खामोश था                            
चार सू गूंजती मेरी तक़रीर थी                                       .                                              

वक़्त ने म्यूजियम में सजाया मुझे                     
उसकी दीवारों पर मेरी तहरीर थी                             .                                                           

आइनों के बदन पर दहकते हुये                                         
पत्थरों की विवशता की तस्वीर थी                                        .                                                  

एक 'सारा शिगुफ्ता1 थी इक थे 'सर्इद2                
जैसे रांझे की आहों मे इक हीर थी                          .                                                     

क्या मुकíर था परछाइयों का 'कंवल                  
कोर्इ दीवारो-दर थे न तदबीर थी।                   .


1.कराची की एक शायरा 2. सारा के प्रेमी।   
 
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