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* रूठ गर्इ तू जब से 'सावन' रूठ गर्इ ह *
रूठ गर्इ तू जब से 'सावन' रूठ गर्इ है बहार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार
सूख गये अंखियों के समन्दर ऐसी लगी प्रीत की भाग
डोर आस की टूट न जाये, फूट न जायें मेरे भाग
मन के गुलषन में निर्मोही कर दे पे्रम फुहार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार
चांद सितारे मांग में तेरी भर दूं ये औकात नहीं
फूल से नाजुक बिस्तर दूंगा तुझको ऐसी बात नहीं
पतझड़ के हर मौसम में हां दूंगा तुझे बहार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार
तू मुझको मिल जाय अगर मिल जाय ज़माने की खुषियां
तू जो साथ रहे, हर ग़म में, रोज़ मनाउं रंगरलियां
सीधा सादा हूं, मुफि़लस हूं लेकिन हूं दिलदार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार
हीरा मोती लाल जवाहर पे्रम मिलन की राह में क्या
सारी ख़्ाुषियां लुटा दूं तुझ पे छोड़ दूं मैं सारी दुनिया
मेरे दिल के मालिक कर ले मेरी वफ़ा स्वीकार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार
झूम रहा है पवन बसंती, कलियों ने ली अंगड़ार्इ
यौवन कलष छलक उट्टे हैं रूत मिलन की आर्इ
ऐसे में दे दे दर्षन कर ले सोलह सिंगार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार
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