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Ramesh Kanwal
 
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* जिंदगी नाहक उदासी भर नहीं *
जिंदगी   नाहक  उदासी  भर  नहीं
हौसलों   का  शहर  बे  मंज़र नहीं


बेलिबासी    माप   है  सौंदर्य  की
शील,  लज्जा, आज  का ज़ेवर नहीं


संगिनी   मेरी  नहीं   है  यशोधरा
राज्य संरक्षण  में  उसका  घर नहीं


दिल्लगी दिल्ली ने  दिलवालों से की
मुल्क़  में  अब कोर्इ  भी रहबर नहीं


मुझको  देती  है  सदा  मेरी दुल्हन
कामना   निर्वाण  की  बेहतर  नहीं
 

त्रस्त  पाप  अपराध  से है वसुन्धरा
आँख क्या अब खोलेगा शंकर  नहीं


मुझको   भी  है वेदना  सिद्धार्थ सी
मुक्त  चिंता  भय  से मेरा घर नहीं


मैंने पूछा  जाने-मन  क्या  आओगे
रख  दिया फोन  उसने ये कहकर नहीं


तू  जुदा लहजा जुदा  तेरा 'कंवल
तेरे  तेवर  सा कहीं   तेवर   नहीं
****************
 
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