* ज़ख़्म पर ज़ख़्म वह नया देगा *
ज़ख़्म पर ज़ख़्म वह नया देगा
रोज़ मिलने का सिलसिला देगा
जुल़्फ लब गाल आँख का जादू
ख़्वाब सारे लुभावना देगा
शोख़् नज़रों से जब नवाज़ेगा
हौसले दिल के फिर बढ़ा देगा
कुर्ब की रोशनी में संवरेगा
फ़ासलों के दिये बुझा देगा
फूल शबनम बहार सुबह हवा
जि़ंदगानी का आइना देगा
उसकी सांसों में मेरी ख़्ाुशबू है
किस तरह मुझको वह भुला देगा
फ़लसफ़ा है पुराना पर सच है
जो भी देगा तुम्हें ख़्ाुदा देगा
उसकी रहमत के साये में ख़्ाुश हूँ
चाहतों से मेरी सिवा देगा
भर के बाहों में जिस्म का शोला
एक स्पर्श में बुझा देगा
शीरीं होटों का ज़ायक़ा देकर
जि़न्दा रहने का हौसला देगा
मैं उभर आउँगा हथेली पर
जब भी ऐ दोस्त तू सदा देगा
शामिले-जुर्म तो है वो भी 'कंवल
मुझको तन्हा मगर सज़ा देगा
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