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Ramesh Kanwal
 
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* गुज़़रे मौसम का पता सुर्ख़ लबों1 प *
गुज़़रे मौसम का पता सुर्ख़ लबों1 पर रखना                   
अपनी आंखों में मेरे क़ुर्ब2 का मंज़र3 रखना                        .                                        


तुम गये साल महीनों का संजो कर रखना                    
याद आयेगी मेरी, याद बराबर रखना                               .                                                      


बंद करना न तअल्लुक़4 के दरीचे को कभी                              
तुम मुलाक़ात के आंगन को मुनव्वर5 रखना                                                                  


अपनी सांसो में बसा लेना वफ़़i की खु़शबू                          
अपने जूडे़ को गुलाबों से मुअ़त्तर6 रखना                                                                                            


एक दस्तक तुम्हें चौंकाती रहेगी अक्सर                               
इक दिया दिल के धरौदें मे जलाकर रखना।                                                                                           


मेरे हिस्से मे तबाही की घनी तल्ख़्ाी7 है                     
तुम लबे-शीरीें8 के अमृत को बचाकर रखना                    .


एक जलता हुआ  सूरज है मेरी ज़ात में क़ैद                      
तुम भी लहराता हुआ तन का समुन्दर रखना                     .                         
                                             

गर्द जिस पर न महो-साल9 की जमने पाये                   
दिल की दीवार पे इक ऐसा कलेन्डर रखना                          .                                                 


वो उभर आयेगी हाथों की लकीरों मे 'कंवल'                 
उस के मिल जाने का अहसास बराबर रखना                 .                                                     
    

1. होंट 2. समीप्य 3. दृश्य 4. संबंध 5. प्रकाशमान 6. सुगंधित 
7. कटुता-कड़वाहट 8. मध्ुार होंट 9. महीना वर्ष ।
 
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