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Ramesh Kanwal
 
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* लम्स1 की आंधियों से जो डर जायेंगे *
लम्स1 की आंधियों से जो डर जायेंगे               
क़ुर्ब2 के सारे मंज़र3 बिखर जायेंगे                           .        
                                          
रात दरबान बन कर रहेगी मगर                           
दिन निकलते ही ख़्वाब अपने घर जायेंगे                      .         
                                              
सांसों के डूबते उगते सूरज लिये                                 
उम्र की सरहदोंं से गुज़र जायेंगे                           .        
                                       
जिस्म की रिश्वतें देंगे बरसात को                                 
फिर नये पत्ते लाने शजर जायेंगे                                  .

उसकी यादें न कर दर बदर ऐ 'कंवल'                               
बे ठिकाने ये मंज़र किधर जायेंगे                               .


*************

1. स्पर्श 2. समीपता 3. दृश्य
 
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