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Ramesh Kanwal
 
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* बिखरी हुर्इ हयात1 से सिमटे लिबास थ *
बिखरी हुर्इ हयात1 से सिमटे लिबास थे                    
हम डूबती सदाओं2 के कुछ आस-पास थे                                 . 


आंखों में अपनी मंज़रे-सद-दस्ते-यास3 थे                
हम मौसमे-बहार से यूं रूशनास4 थे                      .                                                           


आया न कोर्इ आशना5 चेहरा ही सामने                              
हम शहरे-ख़्वाबे-ज़ार6 में बेहद उदास थे              .                                                      


रंगीन तितलियों ने लुभाया बहुत मगर                                    
हम पानियों के शहर में टूटे गिलास थे                                  .                  


फैली हुर्इ थी ख़्ाौफ़ की इक धुंद चार सू7                                            
जंगल के जानवर भी बहुत बदहवास थे                                     .                                                                           


लम्हों की धूप छांव ने पहचान छीन ली                                    
हम आइनों के गांव में इक देवदास थे।                             .                                                            


तुम वहम की गुफाओं में खो जाओगे 'कंवल                 
हमको भी सब कहेंगे कि निष्फल प्रयास थे।                .                                            



1. जीवन 2. आवाज 3. निराशा के जंगल के दृश्य 4. परिचित 
5. परिचित-मित्र 6. निदि्रत नगर 7. चतुर्दिष
 
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