* अगरचे मुझको समर्पित किसी का यौवन ê *
अगरचे मुझको समर्पित किसी का यौवन था
मैं बेवफ़ा था, कहीं और मेरा तन मन था .
न छत थी और न दीवारो-दर, न आंगन था
अभाव के घने जंगल में मेरा बचपन था .
उभरते टूटते रिश्तों का खोखलापन था
शजर1 शजर पे इन्हीं लज़्ज़तों2 का गुलशन था .
झिझकती झेंपती गज गामिनी नदी थी उधर
इधर उमंडते समुन्दर का बावलापन था .
वो ख़्वाबगाह3 की ग़ज़लें सुना रही थी मुझे
अदा-ए-ख़्ाास4 से उसका खनकता कंगन था। .
वरक़5 वरक़ पे मुनव्वर6 थीं लब7 की तहरीरें8
किताबे-जिस्म का हर बाब9 मुझसे रौशन था .
नदी ने रेत बनाया था काट कर जिनको
उन्हीं चटानों का फिर डेल्टा पे बंधन था .
मैं ख़्ाुशलिबास मनाजि़र10 सजा के लाता रहा
मेरी ग़ज़ल का अलग लहजा था अलग फ़न11 था .
न पूछ बेबसी उसके कुंवारेपन की कंवल
हवस के नाग लपेटे बदन का चंदन था .
1. वृक्ष 2. आनंद 3.शयनागार 4. विषेष हाव-भाव 5. पृष्ठ-पन्ना
6. प्रकाशमान 7. होंट
8. लिखावट 9. अèयाय 10. दृश्य, 11. शिल्प-कला ।
*********************************
|