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Ramesh Kanwal
 
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* अगरचे मुझको समर्पित किसी का यौवन ê *
अगरचे मुझको समर्पित किसी का यौवन था                        
मैं बेवफ़ा था, कहीं और मेरा तन मन था                       .                                                    

न छत थी और न दीवारो-दर, न आंगन था                     
अभाव के घने जंगल में मेरा बचपन था                           .                                                               

उभरते टूटते रिश्तों का खोखलापन था                                     
शजर1 शजर पे इन्हीं लज़्ज़तों2 का गुलशन था                       .   

झिझकती झेंपती गज गामिनी नदी थी उधर                     
इधर उमंडते समुन्दर का बावलापन था                              .                                                      

वो ख़्वाबगाह3 की ग़ज़लें सुना रही थी मुझे                 
अदा-ए-ख़्ाास4 से उसका खनकता कंगन था।                             .                                                          

वरक़5 वरक़ पे मुनव्वर6 थीं लब7 की तहरीरें8                           
किताबे-जिस्म का हर बाब9 मुझसे रौशन था                                 .                                                              

नदी ने रेत बनाया था काट कर जिनको                                  
उन्हीं चटानों का फिर डेल्टा पे बंधन था                                           .                                                        

मैं ख़्ाुशलिबास मनाजि़र10 सजा के लाता रहा                           
मेरी ग़ज़ल का अलग लहजा था अलग फ़न11 था                       .                                                             

न पूछ बेबसी उसके कुंवारेपन की कंवल                             
हवस के नाग लपेटे बदन का चंदन था                                   .                                              


1. वृक्ष 2. आनंद 3.शयनागार 4. विषेष हाव-भाव 5. पृष्ठ-पन्ना 
6. प्रकाशमान 7. होंट 
8. लिखावट 9. अèयाय 10. दृश्य, 11. शिल्प-कला ।  
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