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Ramesh Kanwal
 
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* लिबासे- जि़ंदादिली1 तार तार था कित *
लिबासे- जि़ंदादिली1 तार तार था कितना                                    
गि़लाफ़े-ज़ीस्त2 में वह बेक़रार था कितना                         .                                                                


हसीन दर्द का सोलह सिंगार था कितना                                      
मुझे हयात3 की रानी से प्यार था कितना                       .                                                          


फ़सीले-शब4 से इरादों के पांव रूक न सके                                   
तुलू-ए-सुबह5 का मुझको खु़मार था कितना                       .                                                                     


मै सुन रहा था दरे-दिल पे दस्तकें उसकी                               
विरह का वातावरण ख़्ा़ुशगवार था कितना                                       .                                                                  


मेरी तलाश में उसकी निगाहे-बेकस6 थी                                          
वो पंख दे मुझे अश्कबार था कितना                                  .                                                                   


न रास आ सकी जिस्मों की दोपहर उसको                                    
लबों की धूप में वो बेक़रार था कितना                                       .                                                                


सफ़ीना7 सांसों का था मौत के भंवर में 'कंवल                             
किसी का फिर भी मुझे इंत़जार था कितना                     .                                                             

1. प्रसन्नचितता का वस्त्र 2. जीवन का परिधान 3. जीवन 4. रजनी की प्राचीर 
5. प्रभात का उदय 6. मजबूर दृषिट 7. नौका।
 
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