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Ramesh Kanwal
 
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* किसी की आंखों में बेहद हसीन मंज़र  *
किसी की आंखों में बेहद हसीन मंज़र था                                      
मेरा  बदन  था  जज़ीरा1  वो  इक  समुंदर था    	                                                               


वो जलते पंख लिये बढ़ रहा था मेरी तरफ़                      
मेरी रगों में ठिठुरता हुआ दिसंबर था                                      .                                                     

जो एक जुगनू सा बुझता रहा, दमकता रहा                          
वो अजनबी तो शनासाओं2 से भी बेहतर था               .                                              

उदास सूर्यमुखी खो गर्इ थी सूरज में                       
थकन से चूर मगर रौशनी का बिस्तर था                                                                  

बराय-नाम तो पानी था उसकी चारो तरफ़                            
मगर जो ठहरा तो सहरा3 में वह शनावर4 था                                                                              

अजीब बात बतार्इ है जोगनों ने हमें                      
वो बूढ़ा साधू नहीं खौफ़नाक खंजर था                                                                             


'कंवल' थीं तेज हवायें मेरे तआकुब5 में                            
मै अपने वक़्त का जलता हुआ कलेंडर था                                                                


1. द्वीप-टापू 2. परिचित, 3. मरूथल, 4. तैराक, 5. अनुसारण-अनुधावन।
 
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