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Ramesh Kanwal
 
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* आस्मां से छिन गया जब चांद तारों का  *
आस्मां से छिन गया जब चांद तारों का लिबास1       
शबनमी  कपड़ों  में लिपटी थी ज़मीं की नर्म घास                                                            


धुंद के पर्वत पिघलते देखकर खुश थीं बहुत              
दो पहर को ताजा़ कलियां भी हुर्इं पर महवे-यास7                                                                                 


तोड़कर दीवार   लम्हों3    की हुआ जब रू-ब-रू4       
मैं भी अफ़्सुर्दा5 था, उसका दिल भी था बेहद उदास                                                                          


मौजज़न6 इमरोज़7 का खारा समुंदर था बहुत                 
तेरी यादों के जज़ीरे  थे मगर कुछ आस-पास                                                          


जब बदन कलियों का सूरज की किरण छूने लगी               
ओस की बूंदों ने पाया खुद को बेहद बदहवास                                                                         


मेरे तन  में  खे़माज़न8  थी   इक  सुलगती  दोपहर      
वो भी था पहने हुये बफऱ्ीले मौसम का लिबास                                                                   


जिस्म की चादर लपेटे था 'कंवल' वह गुलबदन          
मै  भी उससे रेज़ा   रेज़ा2  हो  रहा था   रूशनास  


1. वस्त्रा-वेशभूषा, 2. नैराश्य में तल्लीन, 3. क्षण-पल, 4. सम्मुख-साक्षात, 5. खिन्न-मलिन, 
6. उर्मिल-तरंगित, 7. आज, 8. डेरा डाले हुए, 9. टुकड़े-टुकड़े।
 
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