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Ramesh Kanwal
 
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* वह जो लगता था पयम्बर इक दिन *
वह जो लगता था पयम्बर इक दिन                              
अपना ही भूल गया घर इक दिन                          .                                           


कांच का घर उसे याद आयेगा                      
खूब पछतायेगा पत्थर इक दिन                 .                                   


ढंड पंहुचायेगा, राहत देगा                               
रेत का गर्म ये बिस्तर इक दिन                 .                                                    


लाज रख लेगी तेरे जज़्बों की                                  
मेरे अहसास की चादर इक दिन                .                                         


आतिशे-वक़्त में तपते तपते                              
हीरे बन जायेंगे कंकर इक दिन  				                                                                 


लुत्फ़े-शोहरत2 मुझे दे जायेगा                                   
तपते लफ़्जों3 का समुंदर इक दिन                     .                                     


पाप जल जायेगा  दुनिया  का 'कंवल'   
आंख जब  खोलेगा  शंकर  इक दिन              .                                   


1. समय की अगिन, 2. ख्याति का हर्ष, 3. शब्दों ।

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