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Ramesh Kanwal
 
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* रोज़ डूबे हुये सूरज को उगा देती है *
रोज़ डूबे हुये सूरज को उगा देती है                         
रात किस किस को अंघेरे मे सदा देती है                           .                                                     



वक़्त की घूप मुझे कैसी सज़ा देती है                                
आग हर ख़्वाब के जंगल में लगा देती है                  .                                                  



आबशारों1 से उभरती हुर्इ शादाब2 सदा3                                   
दिल मे ग़ालीचा-ए-ख़्वाहिश4 को बिछा देती है                        .                                                        



तल्ख़5 सांसों के सफ़र की ही सज़ा है काफ़ी                     
जि़ंदगी  क्यों  मुझे अहसासे-ख़ला6   देती   है                                                                                                          



यूं तो जंगल में सिककती है हवा सदियों से                    
खुश्क शाखों़ को मगर रंग हरा देती है                  .                                           



कड़वे हालात के गिर्दाब7 से हस्ती मेरी                 
लज़्ज़ते-साहिले-तिफ़्ली8 को सदा9 देती है  	     .                                          



तुझसे बिछुडे हुये अरसा हुआ पर जाने-कंवल         
तेरी सौग़ात मुझे अब भी रूला देती है                       .                                   


1. जल प्रपात 2. हरा भरा, सुसिक्त 3. èवनि, आवाज 4. अभिलाषा-आकांक्षा की कालीन 
5. कड़वा कटु 6. रिक्तता की अनुभूति 7. भंवर 8. बचपन का आनन्द 9. èवनि, आवाज।
 
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