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Ramesh Kanwal
 
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* तन की ख़्वाहिश मन की लगन को सू-ए-हवस1 *
तन की ख़्वाहिश मन की लगन को सू-ए-हवस1 ले जायेगी              
किस को ख़बर थी तेरी जुदार्इ ये दिन भी दिखलायेगी             	                                                                     

जनम  जनम के साथ का  वादा  पलक  झपकते  टूट  गया  
अब कोर्इ अनजानी गोरी  जीवन  में रम जायेगी               	                                                   

राधा जिसकी विरह में जीवन भर सुलगी, उस प्रेमी को                           
क्या मालूम था ये दुनिया इक दिन अवतार बनायेगी          	                                                                   

हम बेहद मश्कूर2 हैं उसके जो बख्शा है कुदरत ने             
क्या कीजे उस शै की शिकायत जो न हमें मिल पायेगी                                                     


जाड़े के सूरज की तरह अच्छा लगता है रूप तेरा             
तेरे रूप की घूप भी लेकिन कब तन मन बहलायेगी              	                                                            

रह न सकी महफ़ूज़3 जहां दो रूहों की पहचान 'कंवल       
वहां बदन की ध्ूाप ही कब तक ज़ख़्मों को सहलायेगी                  	                                                                                                                                                                


1.  वासना की ओर 2. कृतज्ञ 3. सुरक्षित
 
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