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Ramesh Kanwal
 
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* है बात जब कि जलती फ़ज़ा1 में कोर्इ च&# *
है बात जब कि जलती फ़ज़ा1 में कोर्इ चले                  
बरसात  में तो नाला भी बन कर नदी चले              .                                                                


औरों को हमने खं़दालबी2 बांट दी मगर                   
खु़द   अपनी    चश्मे-शौक़3    मे   लेकर   नमी चले                           


इक जाम और पी लें सरे राहे जिंदगी4                           
ठहरो ज़रा रफ़ीक़ो5 कि हम भी अभी चले                                                                                                


तुम से बिछड़ के मैं न कभी चैन पा सका          
तुम क्यों मुझे भुला के मेरी जिं़दगी चले                  	                                                        


सूरज की घूूप से कभी सूखी नहीं नदी                
फिर क्यों न ग़म में हंसते हुए आदमी चले         
                                                           

ये बेवसी कि ज़ख़्म दिखाना भी है गुनाह               
अच्छा चलो ये साजिशे-अगियार6 भी चले                
                                                          

बिखरी हुर्इ हयात7 समेटंूगा मै 'कंवल                                    
शायद इसी से कार गहे-जि़ंदगी चले                               	                                                      


1. वातावरण 2. होटों की हंसी 3. पे्रम नयन 4. जीवन की राह में
 5. मित्रों 6. शत्रुओं का षड़यंत्र 7. जीवन ।
 
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