* है बात जब कि जलती फ़ज़ा1 में कोर्इ च *
है बात जब कि जलती फ़ज़ा1 में कोर्इ चले
बरसात में तो नाला भी बन कर नदी चले .
औरों को हमने खं़दालबी2 बांट दी मगर
खु़द अपनी चश्मे-शौक़3 मे लेकर नमी चले
इक जाम और पी लें सरे राहे जिंदगी4
ठहरो ज़रा रफ़ीक़ो5 कि हम भी अभी चले
तुम से बिछड़ के मैं न कभी चैन पा सका
तुम क्यों मुझे भुला के मेरी जिं़दगी चले
सूरज की घूूप से कभी सूखी नहीं नदी
फिर क्यों न ग़म में हंसते हुए आदमी चले
ये बेवसी कि ज़ख़्म दिखाना भी है गुनाह
अच्छा चलो ये साजिशे-अगियार6 भी चले
बिखरी हुर्इ हयात7 समेटंूगा मै 'कंवल
शायद इसी से कार गहे-जि़ंदगी चले
1. वातावरण 2. होटों की हंसी 3. पे्रम नयन 4. जीवन की राह में
5. मित्रों 6. शत्रुओं का षड़यंत्र 7. जीवन ।
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