* उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा *
उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा
कंकर न इसे मारो कि है फूल-सा चेहरा
तनवीर1 मिली हफऱ्-सियह2 से भी जहां को
कोरा था जो काग़ज़ वो है अब वेद का चेहरा
कुछ धूूल भी दरपन पे है लम्हों के सफ़र की
कुछ ग़म की तपिश से भी हुआ सांवला चेहरा
मै पेड़ हूं, दम लेते हंै, सब छांव में मेरी
झुलसे है मगर धूप में तन्हा मेरा चेहरा
अहसास के आंगन में कोर्इ फूल खिला है
आता है बहुत याद 'कंवल यार का चेहरा
1 रौषनी, ज्ञान 2. काले अक्षर ।
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