* काबे से निकल के भी हैं इक काबे के अं *
काबे से निकल के भी हैं इक काबे के अंदर
सीने से लगाये हमें है काशी के मंदिर
ऐ बुतशिकनो! महवे-तवाफ़1 आज हो क्याें कर
जब संग2 था इक रोज़ वो हंसता फ़ने-आज़र3
आमादा-ए-हक़गोर्इ4 न कर दे ये तग़ाफ़़ुल5
ऐसा न हो बन जायें तेरी राह का पत्थर
बरसो जो बियाबां6 पे तो हो जि़क्रे-इनायत7
मोहताजे-करम8 तो नहीं लहराते समन्दर
आ जा भी कि बरसात के अब आखि़ारी दिन हैं
आंखों में लरज़ते हैं तेरे वस्ल9 के मंज़र10
करते है कंवल जो तेरी मिदहत11 तेरे मुंह पर
वो लोग चुभोते हैं तेरी पीठ में खंजर
1. परिक्रमा में मग्न 2. पत्थर 3. एक मूर्ति तराश का नाम 4. सत्य कहने का तत्पर
5. उपेक्षा 6. रेगिस्तान 7. अनुग्रह की चर्चा 8. कृपा पात्र 9. मिलन-संयोग 10. दृश्य 11. प्रशंसा ।
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