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Ramesh Kanwal
 
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* जब ज़ुल्फ़ तेरी मुझ पे बिखरती नज़ë *
जब ज़ुल्फ़ तेरी मुझ पे बिखरती नज़र आये                         
बिगड़ी हुर्इ तक़दीर संवरती नज़र आये                        	                                                         

हौले से सबा1 जब भी गुज़रती नज़र आये                             
तस्वीर तेरी दिल में उतरती नज़र आये                                	                                                      

ये मंजि़ले-उल्फ़त2 तो नहीं अहदे-गुज़श्ता3                         
इक याद थी दिल में जो बिसरती नज़र आये                      	                                                         

 होटों  की    हंसी  ताज़गी - ए- ज़ख़्म  है  यारो    
 दिल  में  ये  छुरी  बन  के  उतरती  नजर   आये                     	                                                   


मलबूसे-मसीहा4 में छुपे बैठे हैं क़ातिल                        
अब जीस्त5 न क्यों इनसे भी डरती नज़र आये                	                                                        


बख्शी है 'कंवल मैंने ग़मे-ज़ीस्त को शोहरत                          
मै हूं कि हंसी लब पे संवरती नज़र आये                                	                                                               


1.प्रभात समीर 2. अनुराग का गंतव्य 3. गुजरा हुआ काल 
4. मसीहा के भेष में 5. जीवन ।
 
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