* जब ज़ुल्फ़ तेरी मुझ पे बिखरती नज़ë *
जब ज़ुल्फ़ तेरी मुझ पे बिखरती नज़र आये
बिगड़ी हुर्इ तक़दीर संवरती नज़र आये
हौले से सबा1 जब भी गुज़रती नज़र आये
तस्वीर तेरी दिल में उतरती नज़र आये
ये मंजि़ले-उल्फ़त2 तो नहीं अहदे-गुज़श्ता3
इक याद थी दिल में जो बिसरती नज़र आये
होटों की हंसी ताज़गी - ए- ज़ख़्म है यारो
दिल में ये छुरी बन के उतरती नजर आये
मलबूसे-मसीहा4 में छुपे बैठे हैं क़ातिल
अब जीस्त5 न क्यों इनसे भी डरती नज़र आये
बख्शी है 'कंवल मैंने ग़मे-ज़ीस्त को शोहरत
मै हूं कि हंसी लब पे संवरती नज़र आये
1.प्रभात समीर 2. अनुराग का गंतव्य 3. गुजरा हुआ काल
4. मसीहा के भेष में 5. जीवन ।
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