donateplease
newsletter
newsletter
rishta online logo
rosemine
Bazme Adab
Google   Site  
Bookmark and Share 
design_poetry
Share on Facebook
 
Ramesh Kanwal
 
Share to Aalmi Urdu Ghar
* पैरों में मेरे फर्ज की जं़जीर पड़ì *
पैरों में मेरे फर्ज की जं़जीर पड़ी है                             
ए जज़्ब-ए-दिल1 ठहर बहुत सख़्त घड़ी है                         	                                                           

अब जन्मों के रिश्ते भी कहीं टूट न जायें                            
यूं अपनी वफ़ा फर्ज से इस बार लड़ी है                                    	                                                          


जुल्फों की घटा, आंख के खुम2, प्यार का बादा3                      
आगोश4 मे आ जाओ लिये रात बड़ी है                         .                                                                    


तदबीर5 से जाग उठती है सोर्इ हुर्इ तक़दीर                           
तदबीर मुक़íर की वो खामोश कड़ी है                           .                                                          


इक पल की खुशी को हैं तरसते कर्इ युग से                        
कहते है 'कंवल उम्र-ग़मे-यार बड़ी है                                    .                                                       


1 मन की भावना 2. शराब का मटका 3. मदिरा 4. गोद 5. उपाय, युकित।  
   

 
Comments


Login

You are Visitor Number : 370