* आज भी मेरा दामन खाली, आज भी दिल वीरा *
आज भी मेरा दामन खाली, आज भी दिल वीरान
वक्त सजाये आज भी बैठा है रंगीन दुकान .
फ़ौजी बूटों से घायल गांव की पगडंडी पर
एक कुंवारी ढूंढ रही है दो पैरों के निशान .
जाम के बदले मयखाने में चलती हैं तलवारें
साक़ी दूर खड़ा है गुमसुम और खुदा हैरान .
कैसा है ये दौरे-तरक़्क़ी क्या इसकी सौग़ात
हथियारों की कीमत उची सस्ता है इन्सान .
जाने किसकी आस में खोये हैं गोरी के नैन
गली ख़्ामोश, उदास मुंडेरे आंगन है सुनसान .
सारी खुदार्इ प्रीत की दुश्मन है मेरे महबूब
रूठ गये जो तुम भी मुझसे रह न सकेेंगे प्राण .
आवारों सा भटक रहा हू गलियों में मैं आज 'कंवल
अहले-नज़र1 महवे-हैरत2 हंै कौन है ये इन्सान .
1. पारखी लोग 2. चकित-विसिमत
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