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Ramesh Kanwal
 
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* आज भी मेरा दामन खाली, आज भी दिल वीरा&# *
आज भी मेरा दामन खाली, आज भी दिल वीरान                     
वक्त सजाये आज भी बैठा है रंगीन दुकान                .                                                      
	
फ़ौजी बूटों से घायल गांव की पगडंडी पर                                    
एक कुंवारी ढूंढ रही है दो पैरों के निशान                          .                                                         

जाम के बदले मयखाने में चलती हैं तलवारें                      
साक़ी दूर खड़ा है गुमसुम और खुदा हैरान                       .                                                        

कैसा है ये दौरे-तरक़्क़ी क्या इसकी सौग़ात                           
हथियारों की कीमत उची सस्ता है इन्सान                             .                                                         

जाने किसकी आस में खोये हैं गोरी के नैन                  
गली ख़्ामोश, उदास मुंडेरे आंगन है सुनसान                .                                                           

सारी खुदार्इ प्रीत की दुश्मन है मेरे महबूब                     
रूठ गये जो तुम भी मुझसे रह न सकेेंगे प्राण                          .                                                                 

आवारों सा भटक रहा हू गलियों में मैं आज 'कंवल                   
अहले-नज़र1 महवे-हैरत2 हंै कौन है ये इन्सान                      .                                                      


1. पारखी लोग 2. चकित-विसिमत
 
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