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* सर्द है रात, सुलगती हुर्इ तन्हार्ç *
सर्द है रात, सुलगती हुर्इ तन्हार्इ है
दिल के आग़ोश में इक चोट उभर आर्इ है .
मेरे महबूब कहां है तू सदा ही दे दे
जिं़दगी फिर मेरे माज़ी को पुकार आर्इ है
महो-अंजुम1 की जवानी भी ढली जाती है
आखि़री लौ तेरी उम्मीद को उसकार्इ है .
जुस्तज2ू मेरी ज़मी पर न करो अहले-ज़मीं3
जि़ंदगी मेरी ख़्ालाओं के करीब आर्इ है .
जख़्म के फूल़ महक उठठे हैं, सागर खनके
साकि़या! जाम, चली यादों की पुरवार्इ है .
जब भी छार्इ है मेरे सर पे मुसीबत की घटा
आशना चेहरों ने यक गोना4 जि़या पार्इ है .
ज़ुल्फ़-बर-दोश5 है साक़ी भी घटायें भी हैं
रक़्से-मय तेज़ करो जश्न की रात आर्इ है .
गर्द राहों की मेरे पांव ने चाटा है 'कंवल
तब कहीं मंजि़ले-मक़्सूद6 नज़र आर्इ है। .
1. चांद और सितारों 2. अन्वेषण, खोज 3. पृथ्वी निवासियों
4. एक रंग-एक प्रकार 5. कंध्े पर अलक 6. अभीष्ट स्थान ।
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