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Ramesh Kanwal
 
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* झूमती हर सुबह की ख्ूा में नहार्इ श *
झूमती हर सुबह की ख्ूा में नहार्इ शाम है                           
फिर भी सर पर सुबह के ही क़त्ल का इल्जाम है                            .                                                    

क्या हुआ गलियों में मेरा इश्क़ जो बदनाम है                               
दर हक़ीक़त1 इश्क़ रूस्वार्इ2 का ही इक नाम है                      .                                                      

फिर सदा3 दी है मेरे माज़ी4 ने मुझको दफ़्अतन5                
फिर मेरी सांसो में बरपा6 हश्र7 का कोहराम है                     .                                                            

लहर इक मिटते ही आ जाता है लहरों का हजूम           
जिं़दगी शायद किसी तूफ़ाने-ग़म का नाम है                             .                                                         

फिर रहा हूं दर बदर ज़ख़्मों की चादर ओढ़कर      
ये मेरे माहौल ने बख्शा मुझे इन आम है                       .                                                                 


कितने अश्कों के दिये हम ने जलाये ऐ 'कंवल                           
उस हंसी के वास्ते जो आज तक गुमनाम है                                       .                                                                                      




1. वास्तव में, 2. बदनामी 3. आवाज, 4. अतीत 
5. अकस्मात, 6. उठा हुआ 7. प्रलय । 




 
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