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Ramesh Kanwal
 
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* तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसात *
तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसातों में दिल की जलन     
ढंड़ी फुहारों से लगती है, तन मन में क्यों और अगन                      .                                              


तुम  क्या  जानो  बरसे हैं जब  आवारा  बादल 'सावन   
बढ़ जाती है कितनी तुम से मिलने की तड़पन तरसन                     .                                        


भीग रही है कोर्इ कुंवारी छत पर इन बौछारों में             
कोर्इ  दिवाना प्रीतम  के  दरषन  में  है यूं  आज मगन 		                                                            


आह मचलने लगते हैं अरमान दिले-आवारा में                
आता है जब याद तेरा भीगा भीगा ष्षफ़्फ़ाफ़ बदन                        .                                                         

तुम हो कहां महबूब मेरे सावन की नषीली रातों में                  
देख 'कंवल बेबस हो कर ढूढ़े हैं तुम्हें दरपन दरपन                  .
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