* तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसात *
तुम ही कहो बढ़ जाती है क्यों बरसातों में दिल की जलन
ढंड़ी फुहारों से लगती है, तन मन में क्यों और अगन .
तुम क्या जानो बरसे हैं जब आवारा बादल 'सावन
बढ़ जाती है कितनी तुम से मिलने की तड़पन तरसन .
भीग रही है कोर्इ कुंवारी छत पर इन बौछारों में
कोर्इ दिवाना प्रीतम के दरषन में है यूं आज मगन
आह मचलने लगते हैं अरमान दिले-आवारा में
आता है जब याद तेरा भीगा भीगा ष्षफ़्फ़ाफ़ बदन .
तुम हो कहां महबूब मेरे सावन की नषीली रातों में
देख 'कंवल बेबस हो कर ढूढ़े हैं तुम्हें दरपन दरपन .
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