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* उमीदों की बस्ती सजी, तुम न आये *
उमीदों की बस्ती सजी, तुम न आये
निगाहें रहीं ढूढ़ती तुम न आये .
लिये साग़रो-मीना बैठे रहे हम
घटाओं में थी बरहमी1 तुम न आये .
जवां हुस्न वालों के मेले लगे थे
तुम्हारी ही थी बस कमी, तुम न आये .
जुदा कर न पाती कभी हमको दुनिया
मगर हां तुम्हारी खुशी, तुम न आये .
तुम आओगे इक दिन लिये साजे-इश्रत2
ये मौहूम3 उम्मीद थी, तुम न आये .
हर इक गाम4 पर हंस रहे थे उजाले
मेरे दिल में थी तीरगी5 तुम न आये .
वफा से 'कंवल इक ज़माना था बरहम6
मगर आह क्या बात थी तुम न आये
1. रंजिश, अप्रसन्नता 2. सुख का उपकरण 3. भ्रम-मूलक 4. रास्ता
5. अंधकार 6. कुपित-क्रुध
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