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Ramesh Kanwal
 
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* उमीदों की बस्ती सजी, तुम न आये *
उमीदों की बस्ती सजी, तुम न आये                
निगाहें रहीं ढूढ़ती तुम न आये                             .                                          

लिये साग़रो-मीना बैठे रहे हम                                  
घटाओं में थी बरहमी1 तुम न आये                              .                                                       

जवां हुस्न वालों के मेले लगे थे                               
तुम्हारी ही थी बस  कमी, तुम न आये                              .                                        

जुदा कर न पाती कभी हमको दुनिया               
मगर हां तुम्हारी खुशी, तुम न आये                          .                                                           

तुम  आओगे इक दिन लिये साजे-इश्रत2    
ये मौहूम3 उम्मीद थी, तुम न आये                         .                                             

हर इक गाम4 पर हंस रहे थे उजाले                           
मेरे दिल में थी तीरगी5 तुम न आये                                       .                                       

वफा से 'कंवल इक ज़माना था बरहम6                            
मगर आह क्या बात थी तुम न आये 					                            


1. रंजिश, अप्रसन्नता   2. सुख का उपकरण 3. भ्रम-मूलक 4. रास्ता  
5. अंधकार 6. कुपित-क्रुध            
 
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