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Ramesh Kanwal
 
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* दिल की दुनिया हो गर्इ जे़रो-ज़बर1 *
दिल की दुनिया हो गर्इ जे़रो-ज़बर1                       
जब भी याद तेरा तर्जे़-सफ़र2                             .                                                

वो सलामे-शौक़3 वो अफ़सुर्दगी4                    
वक़्ते-रूख़सत5 वो तेरी नीची नज़र                          .                                                         

ख़ारे-तिश्नालब6 की आंखों में चमक                           
आबला-पा मुझको बढ़ता देखकर                             .                                 

इश्क़ ही के दम से दोनों की बहार                        
दश्ते-वहशत7 हो कि हो मजनूं का घर                                 .                                                  

इश्क़ की तक़दीर में कुछ भी नहीं                                
शमअ़ को जलना है लेकिन ता-सहर8                                          .                                             

इखि़तयार9 अपनी ही हस्ती10 पर नहीं                                 
आ गर्इ है जिं़दगी किस मोड़ पर                                        .                                              

जब ढ़ले इफ़लास11 के सांचे में हम                           
फिर गर्इ हमसे ज़माने की ऩजर                                 .                                        

फूल बरसाये थे मैंने जिस जगह                                 
है उसी वादी में ज़ख़्मी मेरा सर                                       .                                               

हंू 'कंवल मैं फूल इक मसला हुआ                        
बांटता हूं दहर12 को खु़शबू मगर                              .                                               



1. अस्त-व्यस्त 2. यात्राा की शौली 3. आदर भरा प्रणाम 
4. खिन्नता, उदासीनता 5. विदा के समय 6. पिपासित कांटे 
7. पांव के छालों सहित त्रास का वन 8. प्रात: काल तक 
9. नियंत्रण 10. असितत्व 11.निर्धनता 12. दुनिया ।
 
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