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* राज किरण खो गया था *
राज किरण
राज किरण खो गया था
राज किरण मिल भी गया
बात तो इतनी सी है...
वक़्त के साथ वो इक मेले में था
इक गेलैक्सी सी ज़िन्दगानी थी
बीवी बच्चे थे और जवानी थी
और फिर जाने क्या हुआ कैसे
वक़्त के हाथ से छुटी उंगली
खो गए रंग उजड़ गया मेला
हमनवा छोड़ गई छोड़ गये भाई भी
छोड़ गये बच्चे भी छोड़ गये साथी भी
वक़्त उसे भूल गया था उस दिन
और फिर पन्द्रह बरस गुज़रे
वक़्त ने फिर जम्हाई ली इक दिन
फिर से वो उसकी खोज में निकला
दूर कायनात के इक कोने में उसने देखा
एक बेनूर सी इक खोह सा पागलखाना
उसने पहचान लिया दूर से ही दीवाना
बढ़ के छूने ही वाला था, ठिठका
सोच में पड़ गया ज़रा कुछ वक़्त
बात महज़ पन्द्रह बरस की नहीं
इक सदी बीच से गुज़र गई जो
इक गेलैक्सी कहीं बिखर गई जो
कौन देगा हिसाब उसे उसका?
-सतीश बेदाग़
[sbedaag@gmail.com]
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