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Satish Bedaag
 
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* एक मासूम मोहब्बत पे मचा है घमसान *
ग़ज़ल
 
एक मासूम मोहब्बत पे मचा है घमसान
दूर तक देख समंदर में उठा है तूफ़ान !
 
एल लड़की थी सिखाती थी जो खिलकर हंसना
आज याद आई तो हो आई है सीली मुस्कान !
 
एक वो मेला वो झूला वो मेरे संग तस्वीर
क्या पता ख़ुश भी कहीं है कि नहीं वो नादान !
 
फिर से बचपन हो तेरा शहर हो और छुट्टियाँ हों
काश मैं फिर रहूँ कुछ रोज़ तेरे घर मेहमान !
 
एक मुंडेर पे इक गाँव में इक नाम लिखा है
रोज़ उस में से ही खुलता है ये नीला असमान !
                      -सतीश बेदाग़
 
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