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Satish Bedaag
 
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* ये ग़ज़ल बंदे की हर दिल को लुभाती ह *
ग़ज़ल
 
ये ग़ज़ल बंदे की हर दिल को लुभाती है जनाब
ये रतनजोत है कई रंग में आती है जनाब ...!
 
ये ग़ज़ल मुझको गले मिलती है मनिन्द-ए-हवा
एक-एक पत्ते का दुख-दर्द बताती है जनाब ...!
 
जिसकी मुस्कान पे रश्क आए परीज़ादों को
ये ग़ज़ल उसको सुलाती है जगाती है जनाब..!
 
सब्ज़ करती है ग़ज़ल ज़हनों को, जैसे बारिश
धूल-अटे पौधों को नहलाती-धुलाती है जनाब..!
 
हुस्न को पहले बताती है ग़ज़ल हुस्न है तू
और फिर इश्क़ का भी पाठ पढ़ाती है जनाब..!
 
-सतीश बेदाग़
 
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