* एक नज़्म: 'पीला पत्ता' *
एक नज़्म: 'पीला पत्ता'
दादी अम्मा ने माँ की ख़ातिर था जमना दाई को बुलवा भेजा
दादी बनने के चाव में दौड़-दौड़ के फिर मोहल्ले भर में बजाई थाली
और बुआ ने घर की चौखट पे शीर्ष के पत्ते ला के बांधे
हर एक चेहरे पे फूल से खिल उठे थे जैसे
घर पे चलके बहार आई थी जैसे उस दिन
अब तो हर साल आज के दिन
यहाँ पे आता है सूखी पतझड़ की शाल ओढ़े
और फिर देखता ही रह जाता हूँ मैं हर बार
'पक्के-पक्के से पीले पत्ते सा
और इक साल उम्र से देखो झड़ गया है !'
[ 'अपने जन्मदिन पर' -'एक चुटकी चाँदनी' (2009) में से ]
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