* एक माँ थी एक गैया ख़ूब बचपन हम जिए *
ग़ज़ल
एक माँ थी एक गैया ख़ूब बचपन हम जिए
एक थन मेरे लिए था एक बछड़े के लिए
लौ जलाती थी दमक उठता था चेहरा धूप सा
जल उठे आलों में फिर से माँ के रक्खे वो दिए
माँ ने था उड़ना सिखाया एक चिड़िया की तरह
और फिर हम अपने-अपने घौंसलों के हो लिए
वो तो माँ थी बाँच लेती थी मेरा दर्द आँख से
आपको जो पूछना है कागज़ों से पूछिए
चार में से दो दीवारें मेरे हिस्से आ गयीं
और जामुन का दरख्त अब आधा-आधा बाँटिये
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