* तेरी कुछ तो यादें दिल में शरमाती-ब *
ग़ज़ल
तेरी कुछ तो यादें दिल में शरमाती-बलखातीं हैं
और कुछ सालों बाद आज भी आंख दबा मुसकातीं हैं
मेरे कमरे की ताक़ों पर फ्रेम किए ग़म रखे हैं
तुम कहते हो उन लमहों की यादें घर मेहकातीं हैं
तेरी यादें हैं या किसकी आके तो पहचान ज़रा
गर तेरी हैं आके लेजा मुझको बहुत सतातीं हैं
दिल पागल कैसे भी ना बहले तूने क्या कर डाला
टीवी पर चौबीसों घंटे परियां आती-जातीं हैं
हमको क्या लेना 'बेदाग़' कोई आए और ले जाए
अपने भी आंगन में कटी पतंगें आ ही जातीं हैं
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