* शायर है, छोटे लोगों की क्या इज़्ज़ *
ग़ज़ल
शायर है, छोटे लोगों की क्या इज़्ज़त क्या मान
हीरों को पत्थर कहते हैं ये इनकी पहचान
कितनी मेहनत की मज़दूरी हैं ये बंगला कार
मेरे मन में एक निठल्लों जैसा है अरमान
लाखों के हिस्से के दाने एक का है गोदाम
इक भूखे की आँखों से सब देख रहा भगवान
नए-नए मोटर-बाइक हैं नए-नए असवार
नए-नए अश'आर कहाँ हैं सोचो मेरी जान
घर ही जब नीलाम हो गया ले जाइये सामान
एक पड़ा रहने दीजे वो ग़ालिब का दीवान
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