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Satish Bedaag
 
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* कैसी आज़ादियाँ मनाएं हम *
जश्न-ए-आज़ादी पर
 
कैसी आज़ादियाँ मनाएं हम
कैसे घी के दिए जलाएं हम !
जज़्बा-ए-जाँ-फ़रोशी खो बैठे
वो गंवा आए भावनाएं हम !!
 
तेरी कुर्बानियां गंवा बैठे
हम भगत-सिंह तलक भुला बैठे !
हम सियासत के हाथ बिक गए, माँ
तुझको किस मुंह से ये बताएं हम !!
 
अपने ख़ातिर ही दौड़-भाग रही
अब कहाँ सीनों में वो आग रही !
आँख नम होती है मगर अब भी
जब तराने वो गुनगुनाएं हम !!
 
हम हैं बहु-राष्ट्रीय निशानों पे
फिर ग़ुलामी के हैं मुहानों पे !
अब तो उठना पड़ेगा ऐ यारो
कैसे मुंह ढाँप के सो जाएं हम !!
 
दूध की लाज क्यूँ न रखने चलें
आज फिर से वसंती पहने चलें !
चन्द्रशेखर-सुभाष बनने चलें
क्यूँ न फिर ख़ुद को आजमायें हम !!
                     -सतीश बेदाग़ 
 
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