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Satish Bedaag
 
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* तुम एक उधार की मुस्कान पहन के आती ह *
उधार की मुस्कान
 
तुम एक उधार की मुस्कान पहन के आती हो
कि देख पाऊँ न चेहरा तेरा बुझा-सा मैं
जो मेरा चेहरा इसे देख उदास-उदास न हो
 
ख़रीद रखा है मैंने भी मुस्कुराहट का
कहीं से बुर्क़ा तुझे मुस्कुराता दिखने को
कहीं न मेरी उदासी उदास करदे तुझे
 
ये पारदर्शी-सी मुस्काने है बनावट की
ये गहरे रंग की उदासी छिपेगी क्या इनमें
ये मुस्कुराहटों के परदे आ लौटने चलें
 
उदास-उदास ही बैठें आ आज पल-दो-पल
और इस खुश्क उदासी को ओढ़ कर बैठें
ये रूखी-फीकी सही पर ये अपनी-अपनी है
                                 -सतीश बेदाग़
 
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