* कभी ख्याल में मंज़र जो एक रहता था *
कभी ख्याल में मंज़र जो एक रहता था
वही झुकी हुई शाखें वही दरीचा था
उसी ने फूल खिलाये तमाम खुशियों के
वो मुस्कुराता हुआ जो तुम्हारा लहजा था
किसी की आँखें कहानी सुना रही थीं मुझे
मोहब्बतों का रवां बेजुबान दरिया था
तुम्हारी आँखें समझती थीं दर्द मेरा भी
तुम्हारे दिल से कभी ऐसा एक रिश्ता था
मेरे लबों की ज़मीन पर रवां था नाम उसका
किस अहतियात से वो मेरे दिल में बस्ता था
मुझे तो रोज़ ही मिलने की उस से ख्वाहिश थी
मगर वो 'सीमा' बहुत दूर मुझ से रहता था
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