* झूठी दुनिया कि रिवायत में दिल नहीæ *
------------------- दिल नहीं लगता --------------------
--------------------------------------------------------
झूठी दुनिया कि रिवायत में दिल नहीं लगता....
जिंदगी तुझसे शिकायत में दिल नहीं लगता....
भूख ये पेट कि जज्बों को मार देती है....
इश्क तो दूर इबादत में दिल नहीं लगता....
बस बुरे लोग ही परवाज़ पकड़ सकते हैं....
अब तो अपना भी शराफत में दिल नहीं लगता....
ता-उमर दोस्तों के लुफ्त-ओ-करम देखे हैं....
आजकल अपना रफाकत में दिल नहीं लगता....
दिल तुझे लाख समझाया मगर नहीं माना....
अब मेरा तेरी हिफाज़त में दिल नहीं लगता....
आजकल कौन निभाता है वफ़ा के वादे....
इसलिए अपना मुहब्बत में दिल नहीं लगता....
जबसे तहज़ीब और तमीज ने जकडा है हमे....
तबसे बचपन कि शरारत में दिल नहीं लगता....
सच तेरा मोल कहाँ रह गया इस दुनिया में....
क्या कहें अब तो सदाकत में दिल नहीं लगता....
लोग इसमें भी अदाकारियां रखने लगे हैं....
अब मेरा ऐसी अदावत में दिल नहीं लगता....
आदमी आदमी रहता नहीं इस शय में उतरकर....
इसलिए अपना सियासत में दिल नहीं लगता....
'राज' मंजिल मुकाम कुछ नहीं रहे बाकी....
इसलिए अपना मुसाफत में दिल नहीं लगता....
--------------------------------------------------------
By: Shayar Raj Bajpai
--------------------------------------------------------
|