* नहीं झोंका कोई भी ताज़गी का| *
नहीं झोंका कोई भी ताज़गी का|
तो फिर क्या फायदा इस शायरी का|१|
बहुत दिन तक नहीं बहते हैं आँसू|
वो दरिया हो गया सहरा कभी का|२|
किसी ने ज़िंदगी बरबाद कर दी|
मगर अब नाम क्या लीजै किसी का|३|
महब्बत में ये किसने ज़हर घोला|
बहुत मीठा था पानी इस नदी का|४|
तेरी तस्वीर पर आँसू नहीं हैं|
मगर धब्बा नहीं जता नमी का|५|
वही जो मुस्कुराता फिर रहा है|
उदासी ढूँढती है घर उसी का|६|
वो रिश्ता तोड़ने के मूड में है|
मियाँ पत्ता चलो अब ख़ुदकुशी का|७|
सिमट आए फिर इक दिन ज़ात में हम|
बहुत दिन दुख सहा ज़िंदादिली का|८|
किसी दिन हाथ धो बैठोगे हमसे|
तुम्हें चस्का बहुत है बेरुख़ी का|९|
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