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* आहट हमारी सुन के वो खिड़की में आ गय *
आहट हमारी सुन के वो खिड़की में आ गये|
अब तो ग़ज़ल के शेर असीरी में आ गये|१|
साहिल पे दुश्मनों ने लगाई थी ऐसी आग|
हम बदहवास डूबती कश्ती में आ गये|२|
अच्छा दहेज दे न सका मैं, बस इसलिए|
दुनिया में जितने ऐब थे, बेटी में आ गये|३|
हम तो समझ रहे थे ज़माने को क्या ख़बर|
किरदार अपने, देख – कहानी में आ गये|४|
तुमने कहा था आओगे – जब आयेगी बहार|
देखो तो कितने फूल चमेली में आ गये|५|
उस की गली को छोड़ के ये फ़ायदा हुआ|
ग़ालिब, फ़िराक़, जोश की बस्ती में आ गये|६|
हम राख़ हो चुके हैं, तुझे भी जता तो दें|
बस इस ख़याल से तेरी शादी में आ गये|६|
हाँ इस ग़ज़ल में उन के ख़यालात नज़्म हैं|
इस बार बादशाह – ग़ुलामी में आ गये|७| |
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