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Tufail Chaturvedi
 
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* वरक़-वरक़ पे उजाला उतार आया हूँ| *
वरक़-वरक़ पे उजाला उतार आया हूँ|
ग़ज़ल में मीर का लहज़ा उतार आया हूँ|१|

बरहना हाथ से तलवार रोक दी मैंने|
मैं शाहज़ादे का नश्शा उतार आया हूँ|२|

समझ रहे थे सभी, मौत से डरूँगा मैं|
मैं सारे शहर का चेहरा उतार आया हूँ|३|

मुक़ाबिले में वो ही शख़्स सामने है मेरे|
मैं जिस की ज़ान का सौदा उतार आया हूँ|४|

उतारती थी मुझे तू निगाह से दुनिया|
तुझे निगाह से दुनिया उतार आया हूँ|५|

ग़ज़ल में नज़्म किया आंसुओं को चुन-चुन कर|
चढ़ा हुआ था, वो दरिया उतार आया हूँ|६|

तेरे बगैर कहाँ तक ये वज़्न उठ पाता|
मैं अपने चेहरे से हँसना उतार आया हूँ|७|
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