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Tufail Chaturvedi
 
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* अदालतें हैं मुक़ाबिल - तो फिर गवाह *
अदालतें हैं मुक़ाबिल - तो फिर गवाही क्या|
सज़ा मिलेगी मुझे – मेरी बेगुनाही क्या|१|

मेरे मिज़ाज़ में शक़ बस गया मेरे दुश्मन|
अब इस के बाद मेरे घर की है तबाही क्या|२|

हर एक बौना मेरे क़द को नापता है यहाँ|
मैं सारे शहर से उलझूँ मेरे इलाही क्या|३|

समय के एक तमाचे की देर है प्यारे|
मेरी फ़क़ीरी भी क्या – तेरी बादशाही क्या|४|

तमाम शहर के ख़्वाबों में क्यों अँधेरा है|
बरस रही है – घटाओ! कहीं – सियाही क्या|५|

मेरे खिलाफ़ मेरे सारे काम जाते हैं|
तू मेरे साथ नहीं है, मेरे इलाही क्या|६|

बस अपने ज़ख्म से खिलवाड़ थे हमारे शेर|
हमारे जैसे क़लमकार ने लिखा ही क्या|७|
 
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