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Tufail Chaturvedi
 
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* पल पल सफ़र की बात करें आज ही तमाम| *
पल पल सफ़र की बात करें आज ही तमाम|
मंज़िल क़रीब आई, हुई ज़िंदगी तमाम|१|

पौ क्या फटी, कि शब के मुसाफिर हुए विदा|
पीपल की छाँव तुझसे हुई दोस्ती तमाम|२|

पिछली सफ़ों के लोग जलाएं लहू से दीप|
मैं चुक गया हूँ, मेरी हुई रोशनी तमाम|३|

बस उस गली में जा के सिसकना रहा है याद|
उसकी तलब में छूट गयी सरकशी तमाम|४|

कुछ था कि जिस से ज़ख्म हमेशा हरा रहा|
बेचैनियों के साथ कटी ज़िंदगी तमाम|५|

ये और बात – प्यास से दीवाना मर गया|
लेकिन किसी तरह तो हुई तश्नगी तमाम|६|
 
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