ग़ज़ल
एक बेनाम तस्सली के सिवा कुछ न मिला,
इश्क़ में दिल को खराबी के सिवा कुछ न मिला,,
मैने चाहा था के मुझको भी सुकुं हासिल हो,
मेरे इस दिल को तबाही के सिवा कुछ न मिला,,
मेरी हसरत थी के हर रह पे जलाऊँ दीपक,
रास्तों में मुझे आंधी के सिवा कुछ न मिला,,
दिल की गहराई से मिलता रहा सबसे लेकिन,
मुझको लोगों से बुराई के सिवा कुछ न मिला,,
थी तमन्ना मेरी कुछ फूल चुनूँ गुलशन में,
खुरदुरे हाथों में मिट्टी के सिवा कुछ न मिला,,
इसने चाहा था के खुशियों का जहाँ मिल जाये,
दिल के ज़ज्बों को तबाही के सिवा कुछ न मिला,,
चार तिनकों के सिवा कुछ न था जिस में ए ‘सिराज’,
उस नशेमन को भी बिजली के सिवा कुछ न मिला...!
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