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* कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर1 में रह& *
कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर1 में रहते हैं
वही जो रंग, तितली के सुनहरे पर में रहते हैं|
निकल पड़ते हैं जब बाहर, तो कितना ख़ौफ़ लगता है,
वही कीड़े, जो अक्सर आदमी के सर में रहते हैं|
यही तो एक दुनिया है, ख़्यालों की या ख़्वाबों की,
हैं जितने भी ग़ज़ल वाले, इसी चक्कर में रहते हैं|
जिधर देखो वहीं नफ़रत के आसेबां2 का साया है,
मुहब्बत के फ़रिश्ते अब कहाँ किस घर में रहते हैं|
वो जिस दम भर के उसने आह, मुझको थामना चाहा,
यक़ीं उस दम हुआ, के दिल भी कुछ पत्थर में रहते हैं|
1 साचाँ 2 भूत
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