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* माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है, *
माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है,
सदियों के लिए पल की मुलाक़ात बहुत है|
दिन भीड़ के पर्दे में छुपा लेगा हर इक बात,
ऐसे में न जाओ, कि अभी रात बहुत है|
महिने में किसी रोज, कहीं चाय के दो कप,
इतना है अगर साथ, तो फिर साथ बहुत है|
रसमन ही सही, तुमने चलो ख़ैरियत पूछी,
इस दौर में अब इतनी मदारात1 बहुत है|
दुनिया के मुक़द्दर की लक़ीरों को पढ़ें हम,
कहते है कि मज़दूर का बस हाथ बहुत है|
फिर तुमको पुकारूंगा कभी कोहे 'अना'2 से,
अय दोस्त अभी गर्मी-ए- हालात बहुत है|
1.हमदर्दी 2. स्वाभिमान
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